मुझे जीने दो …

शैली कपिल कालरा द्वारा लिखी एक कविता
तेज बारिश
चादर से ढक कर लायी
मुझे है दाई
माँ के पास रखते हुए बोली
तूने लड़की है जनाई
मैं निडर
अनजान
माँ की गोद में निश्चिंत !
कुछ ख़ुशी कुछ ग़म
माँ के छलकते आँसू,
फिर बोली
तू छोटी नन्ही सी मेरी जान
रखती हूँ जन्नत तेरा नाम
पाँवों की आहट
दरवाज़े पर दस्तक
तेरे बाबा हैं शायद
*
पर तेरे बाबा
क्या कहें
क्या करें
पता नहीं ?
आसान नहीं
जिंदा रखना
तुझको।
*
कुछ दिन पहले एक पिता ने अपनी बेटी को मार दिया क्योंकि उसको बेटा चाहिये था
माँ चिल्लायी
मत छिनो
मेरी जन्नत है वो
माँ को देख
मन ही मन
कहा मैंने
सात दिन की हूँ अभी …
रहने दो
माँ के पास
सुन्ने दो लोरी
शीतल कर रहा
माँ का आँचल मुझे !
माँ के प्यार पर
हज़ारों जान क़ुर्बान
बस,पल भर…
सो लेने दो
थोड़ी देर और
जीने दो
माँ का आँचल
जन्नत है
कफ़न मत बनाओ उसे
रहने दो
थोड़ी देर
सो लेने दो
माँ के पास रहने दो
बस …
आज मुझे जीने दो ।।