राब्दा

शैली कपिल कालरा द्वारा लिखी एक कविता
दर बदर भटकते रहे
मंज़िल लम्बी है अभी
फ़िक्र थी
डर भी था बहुत
तलाश में किसी की
और ज़िक्र तेरा …
हुआ राब्दा
मेरी रूह का तुझसे
तो जाना मंज़िल
दूर ही सही
पर सुकून है
तू साथ है।
शैली कपिल कालरा द्वारा लिखी एक कविता
दर बदर भटकते रहे
मंज़िल लम्बी है अभी
फ़िक्र थी
डर भी था बहुत
तलाश में किसी की
और ज़िक्र तेरा …
हुआ राब्दा
मेरी रूह का तुझसे
तो जाना मंज़िल
दूर ही सही
पर सुकून है
तू साथ है।