परिंदे कब पिंजरे में हैं रहते

शैली कपिल कालरा द्वारा लिखी कविता
देखा है परिंदों को
पिंजरों में कैद होते हुए
आसमान को देखते
और रुकसत होते हुए
पिंजरे तो अक्सर हम हैं बनाते
उम्मीद के पर भी ….
हम हैं काटते
फिर दोष है कैसे
सृष्टि का या क्रमों का
परिंदे हैं
उड़ान भरने के लिए
ना कल रुके
ना रुकेंगे आज
छूने आए आसमान
छूकर ही जाएँगे
परिंदे कब पिंजरे में हैं रहते
आज हैं अगर
कल उड़ जायगे
आसमान में उड़ान हैं भरते
पंखों को लहराके
मदमस्त हैं उड़ते
उड़ान ऊँची
हौसले और ऊँचे
कौन रोक पाया इनको
परिंदे हैं ,
पिंजरे में कब हैं रहते //