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परिंदे कब पिंजरे में हैं रहते

शैली कपिल कालरा द्वारा लिखी कविता देखा है परिंदों कोपिंजरों में कैद होते हुएआसमान को देखतेऔर रुकसत होते हुए पिंजरे तो अक्सर हम हैं बनातेउम्मीद के पर भी ….हम हैं काटतेफिर दोष है कैसेसृष्टि का या क्रमों का परिंदे हैंउड़ान भरने के लिएना कल रुकेना रुकेंगे आज छूने आए आसमानछूकर ही जाएँगे परिंदे कब पिंजरे में हैं रहतेआज हैं अगरकल

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