कोरोना : इतनी दर्दनाक मौत कि मौत को भी रोना आ जाए

आनंद प्रकाश द्वारा लिखित
कोरोना वायरस और हम : बड़ी असहज स्थिति है। एक टीस,खलिश, चुभन और दर्द का ऐसा अहसास, जो मन को बेबसीऔर निराशा की गहरी परतों में लपेट लेता है। जब भी मैं देखता हूं सड़कों पर लापरवाह लोग, दुकानों के आगे भीड़, गली मोहल्लों में खेलते, लड़ते, झगड़ते बच्चे और महिलाओं की बिंदास गोष्ठियां !
ना मास्क, ना डिस्टेंसिंग, ना सावधानी, ना सतर्कता और ना ही किसी तरह की परवाह! लगता है: जैसे हर कोई निर्देशों की खिल्ली उड़ाते हुए कोरोना से दो-दो हाथ करने के लिए बेताब हो रहा है।
इनके इस आत्मघाती दुस्साहस पर आक्रोश भी है, अफसोस भी, चिंता भी,बेबसी भी और दया भी !क्या हो गया है हमें, हमारे देश के शिक्षित, अशिक्षित युवकों,किशोरों, महिलाओं तथा लड़के लड़कियों को ? क्या जरा भी डर नहीं लगता इन्हें वायरस से, कोरोना की हर पल तेज होती रफ्तार से।
क्या इन्हें पता है : प्रतिदिन अस्सी नब्बे हजार संक्रमित, पैतालिस लाख से एक करोड़ की तरफ बढ़ता आंकड़ा, भारी संख्या में मौतें, अस्पतालों में इलाज को तरसते मरीज, गलियारों में बेबस दम तोड़ते बीमार ! ना डॉक्टर, ना नर्स ना सेवादार, ना सहायक, ना अटेंडेंट,ना इलाज, ना देखभाल,ना दवा,ना दुआ! हर तरफ बदहवासी और वातावरण में भयावह आतंक !
क्या इन्हें पता है : बाहर अस्पतालों में एडमिशन केलिए बीमारों का रेला, इलाज को भटकते सगे संबंधी, उल्टी करते, खांसते,कांपते और सांस लेने को तरसते बूढ़े, बच्चे, जवान, महिलाएं और पुरुष !
क्या इन्हें पता है : अस्पतालों में शवों का अंबार, बिस्तरों के ऊपर मुर्दे,शवगृहों में अज्ञात, गुमनाम लाशें, जमीन पर असहनीय पीड़ा से रोते बिलखते कोरोना पीड़ित ! उल्टी, गंदगी, मल मूत्र से सने गीले फर्श, भयंकर बदबू और उस सबके बीच अट्टहास करती यमराज की काली छाया !* क्या इन्हें पता है ! श्मशान में अंतिम संस्कार की लाइन में लगे शव ! गिड़गिड़ाते परिजन, बदहवास, अपनों की लाशें ढूंढते रिश्तेदार, घरवाले, मां बाप, भाई बहन और बच्चे !कब्रिस्तानों में दफनाने के लिए ना जमीन,ना खाली कब्रगाह, ना कब्र खोदने वाले।सुपुर्द ए खाक भी हों, तो हों कैसे ?
सच कहूं तो : ये अज्ञानी नहीं है। इन्हें सब कुछ पता है; फिर भी उसे अनदेखा करने वाले ये नासमझ, समझदार शायद अपने आपको अजर अमर मान,बिना मास्क, बिना सावधानी, सड़कों पर, चौराहों पर, महफिलों में, शादियों में, समारोहों में, उत्सवों में, मॉल,क्लब तथा रेस्तराओं में जिंदगी तलाशते फिरते हैं ; बेखौफ, बेफिक्र, निश्चिंत !
आज नहीं तो कल : ये भी डरेंगे : मन पूछता है और मन ही जवाब देता है : डरेंगे, जरूर डरेंगे एक दिन ! बस, इन्हें इंतजार है खुद का, किसी अपने का, प्रिय का, या किसी सगे संबंधी के संक्रमित होने का ! अगर खुद संक्रमित हुए तो, ना जीने के रहेंगे, ना ही मरने के! और अगर परिवार में कोई कोरोना की पकड़ में आ गया तो, इतने आंसू बहेंगे कि उन्हें पोछने के लिए कोई सूखा कपड़ा भी नहीं बचेगा घर में ; क्योंकि कोरोना एक ही झटके में सारे परिवार को दबोच लेगा! दिखाई देगी तो सिर्फ डरावनी मौत ! मौत के जबड़ों में फंसे फेफड़े और पल-पल गला घोटते मौत के पंजे !
इसलिए बेहतर है, अभी संभल जाओ, समझ जाओ। नहीं समझ आ रहा हो, तो किसी संक्रमित को देख लो; वह कैसे बिना सांस, पानी के बाहर तड़पती मछली की तरह, दीवारों से सिर पटक पटक कर मौत के लिए तरस रहा है। एक बार देख लो, बस; ऐसे डर जाओगे कि रातों को नींद नहीं आएगी, और आ भी गई तो सपनों में डर सांस फुला देगा। फिर सोना तो दूर,अंधेरे कमरे में ठहर भी नहीं पाओगे, एक मिनट भी, अकेले!
अभी तक बचे हो, तो अपनी किस्मत को सराहो, ईश्वर को धन्यवाद दो कि उसकी कृपा से ऑक्सीजन फेफड़ों से होते हुए सुचारु रुप से तुम्हारी धड़कनों को नियमित किए हुए हैं।* कसम खाओ कि जब तक मजबूरी नहीं होगी, घर से बाहर पैर नहीं रखोगे। ना किसी को घर बुलाओगे, ना जाओगे, कहीं भी! जरा सोचो, अगर नहीं जाओगे तो क्या होगा?आसमान तो गिर नहीं जाएगा। वही रहेगा सिर पर! अगर आप सुरक्षित हैं तो !
मेरा कहा मानो : घर में भगवान की मूर्ति के आगे मास्क रखकर ईश्वर का आशीर्वाद लो। यही मास्क ईश्वर की ओर से आपको उपहार है, प्रसाद है, वरदान है, आशीर्वाद है। यही आपका रक्षक है, और यही आपका रक्षा कवच भी ! इसे पहनो, पहनोओ,ना पहनने वालों को समझाओ, डांटो, डपटो, झिड़को। और अगर हो सके तो अपनी तरफ से मास्क बांटो भी!
तरस खाओ दूसरों पर, गैरों पर, समाज पर, देश पर और उससे ऊपर अपनों पर, अपने परिवार पर, बूढ़े मां बाप, पत्नी, बच्चों पर! कोई नहीं है उनका तुम्हारे पीछे : ना कोई सगा,ना संबंधी! ना कोई रोटी देने वाला होगा, ना पानी! हो सकता है, वो बिना दवा के ही मर जाए। अनाथ मत बनाओ उन्हें!
अभी भी समय है। मास्क लगाओ ठीक से नाक मुंह पर। निर्देशों के अनुसार सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करो,रगड़ रगड़ कर साबुन से हाथ धोओ और बेबात मुंह, गाल, आंख, नाक का स्पर्श मत करो।
क्योंकि : ये लड़ाई ना सरकार की है, ना सेना की,ना डॉक्टरों की, ना तुम्हारे अड़ोसियों,पड़ोसियों की और ना ही चौकीदार की । ये लड़ाई तुम्हारी है। तुम्हें ही लड़नी है, तुम्हें ही लड़नी पड़ेगी। और फैसला भी तुम्हारे ही हाथ में है जीतना है या हारना ! जीना है या…
जरा सोचो ; यूं भी, थोड़े दिन की ही तो बात है। इंतजार की घड़ियां खत्म होंगी, दवा निकलेगी, वैक्सीन आएगी, एक नहीं अनेक देशों से! अंधेरा छटेगा, सूरज निकलेगा, नई सुबह होगी, फूल खिलेंगे, चिड़िया चहकेंगी, मौसम बदलेगा, और इंतजार की इस काली सुरंग के उस पार किरणें तुम्हारा स्वागत करती मिलेंगी।
बस, थोड़ा सा धीरज रखो मेरे यार!जीने में जो मजा है, वह मरने में कहां?
इसीलिए डरो! डरोगे, तो बचोगे। बचोगे,तो जिंदगी; क्योंकि आज की भयावह परिस्थितियों में डर ही सत्य है, वही सुंदर है, वही सापेक्ष है, वही जीवन है !