कोल्हापुर का यह संगरोध केंद्र 24 परिवारों के लिए घर जैसा है….

प्रेरणा मेहरोत्रा गुप्ता द्वारा लिखित, शाहिद की जानकारी पर आधारित।
कोल्हापुर: पाटिल और उनका परिवार उन 24 परिवारों में शामिल है, जो लगभग 10 दिन पहले मुंबई से आए थे और उन्हें घर जाने से पहले दो सप्ताह तक संगरोध पूरा करने के लिए कोल्हापुर जिले के धामने गांव में स्कूल में रहने के लिए कहा गया था।
तृप्ति पाटिल जब भी प्राथमिक स्कूल के बरामदे में अपने बच्चे के साथ खेलती हैं तब वह ऐसा बिलकुल भी महसूस नहीं करतीं कि उन्हें संस्थागत संगरोध में रखा गया है।
स्कूल की शिक्षिका तृप्ति ने कहा कि जब उन्होंने स्कूल में व्यवस्था देखी तो अपने छोटे से बच्चे के साथ रहने में उनकी चिंताएं दूर हो गईं। साफ कमरे, साफ़ वॉशरूम, उचित भोजन और दूध की आपूर्ति और एक रसोई भी, जिसे देख वह चिंता मुक्त हुई।उन्होने कहा कि “हम नौ साल से मुंबई में रह रहे थे और वहाँ की हालत खराब होने के कारण हमने गाँव लौटने का फैसला किया। सबसे पहले, जब हमें स्कूल में रहने के लिए कहा गया, तो मुझे चिंता हुई। लेकिन अब, यह लगभग एक छुट्टी की तरह लगता है और हम चाहते हैं कि हम यहां लंबे समय तक रह सकें।
कोल्हापुर जिले के अजारा तालुका में इस स्कूल में रहने वाले 81 लोगों के साथ वह अपने परिवार के संग ख़ुशी से रह रहे है। संगरोध में उन लोगों के साथ गांव के सरपंच शिवाजी लोकरे भी हैं, जो तालाबंदी के दौरान मुंबई में फंसे थे और इस महीने ही लौट सके हैं।
शिवाजी लोकरे ने कहा कि मुंबई के 79 और स्कूल में तीन पुणे के लोग हैं।उन्होंने कहा कि “सरपंच होने के नाते, मैं आवश्यकताओं को जानता हूं और अपने तेरह-दिवसीय प्रवास के दौरान, मैंने इसे निर्धारित किया है। पानी की टंकी में रिसाव, वाशरूम की कुछ मरम्मत, 100 पौधे लगाना और स्कूल का स्वच्छताकरण यह सब संगरोध में रखे लोगों की मदद से किया गया है।
स्थानीय ग्रामीण हमारे लिए और दो ग्रामीणों के लिए सब्जियां, अनाज, फल और अन्य सामग्री दान करते हैं, जो तालाबंदी से पहले मुंबई से लौटे थे, स्कूल की रसोई में खाना बनाते हैं।
मुंबई के चार होटलों के मालिक लक्ष्मण फाल्के के लिए, ऐसे वक़्त में स्कूल में रहने से उनकी बचपन की यादें ताजा हो गईं। उन्होंने कहा “मैं पिछले 25 सालों से दादर में रह रहा हूं और साल में एक बार ही गांव आता था। मैं अपने आठ सदस्यों के परिवार के साथ वापस आया और पिछले सात दिनों से यहां रह रहा हूं। यह वास्तव में बहुत अच्छा है कि हम सभी इस गाँव से, जो वर्षों से मुंबई में रह रहे हैं, इस तरह आज साथ में है और इसकी वजह से हमे एक दूसरे के साथ अच्छा वक़्त बिताने को भी मिल रहा है।
मुंबई के रहने वाले एक एलआईसी एजेंट तुकाराम मागडुम ने कहा कि “मैं लौट आया क्योंकि हम अपने चार महीने के बच्चे के लिए डरे हुए थे, और यहाँ आकर हमारी सारी चितांए गायब हो गई। स्कूल में ख़ुशी के माहौल ने हमे यहाँ ठहरने का आनंद दिया।उन्होंने कहा कि हमने स्कूल में वृक्षारोपण और स्वच्छता गतिविधियों को अंजाम दिया, जिसका मैंने एक बार कभी बचपन में स्कूल में अध्ययन किया था।
धामने गांव में कोरोना दक्ष समिति के एक सदस्य अमित भोसले ने कहा कि सरपंच उन्हें किसी भी सामग्री की आवश्यकता होने पर बुलाता है और उसके अनुसार उन्हें हर ज़रूरत का सामान प्रदान किया जाता है।
अंत में हम बस यही कहना चाहेंगे कि मुसीबत आने पर कोई परेशान हो जाता है तो कोई बुरे वक़्त में भी ख़ुशी के दो लम्हे ढूंढ ही लेता है। कोल्हापुर की यह छोटीसी दास्ताँ हमे उसी सकारात्मक सोच का एहसास कराती है।