ज्ञानी की पहचान सूरत से नहीं सीरत से होती है.

प्रेरणा मेहरोत्रा गुप्ता द्वारा लिखित।

साधारण से लोग भी साधारण तरीके से असाधारण काम कर जाते है आज ये लेख उन्ही सब लोगो के लिए समर्पित है जिन्होंने साधारण सा जीवन जीकर अपने जीवन को सफल बनाया और बहुत से लोगो के लिए एक प्रेरणा बन गये।

धनंजय चौहान-धनंजय, जो एक राजनीतिक कार्यकर्ता भी हैं, ने पंजाब विश्वविद्यालय (पीयू) में एक अलग शौचालय के लिए अथक संघर्ष करने के बाद,विश्वविद्यालय (पीयू) ट्यूशन फीस में माफ़ी के साथ-साथ ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों के लिए एक अलग छात्रावास के लिए भी अनुरोध करने की योजना बनाई थी।वास्तव में, पीयू भारत का पहला विश्वविद्यालय था जिसने अपने प्रवेश पत्र में लिंग के लिए तीसरा कॉलम पेश किया।विश्वविद्यालय के खिलाफ धनंजय की लगातार लड़ाई के कारण, 2014 से ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए प्रगतिशील सम्मान की मांग करते हुए, पीयू ने उनके लिए एक अलग शौचालय बनाने के लिए 23 लाख रुपये के बजट को मंजूरी दी।
धनंजय चौहान की योग्यता – इतिहास में बीए सम्मान। रूसी और फ्रांसीसी भाषाओं और कंप्यूटर विज्ञान और अनुप्रयोग में डिप्लोमा। सामाजिक कार्यों में निपुण। मानव अधिकारों और कर्तव्यों में मास्टर। शास्त्रीय गायन और नृत्य में प्रशिक्षित, और अब P.hd प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रही है।

आइये इस कविता के माध्यम से उनके चरित्र को और जाने।  

धनंजय चौहान चले, अपनी बिरादरी के लोगो को इंसाफ दिलाने,
 क्योंकि एक किन्नर ही किन्नर की तकलीफों को पहचाने।

ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए, एक अलग शौचालय की, की याचना,
ऐसे कोमल हृदय की है बस अपने समुदाय के हक़ में प्रार्थना।

पंजाब विश्वविद्यालय (पीयू) में रहकर पाया इन्होने ह्यूमन राइट्स में ज्ञान,
अपने हुनर और साहस के बल पर, बनाई अपनी एक अनोखी पहचान।

शास्त्रीय गायन और नृत्य में प्रशिक्षित, धनंजय चौहान है एक दयालु इंसान।
ट्रांसजेंडर के लिए मुफ्त शिक्षा,प्रदान करवा कर, बढ़ाया अपनी बिरादरी का इमान।

पूरे भारत में विभिन्न संगठन द्वारा 150 से अधिक पुरस्कार और सम्मान पाया।
माननीय धनंजय चौहान के सु कर्मो ने, इन्हे सफलता के शिखर पर पहुंचाया।

देश विदेश घूम कर, ये अपने समुदाय के हक़ में बोली।
बेरंग थी जिनकी ज़िन्दगी, वो भी खेले इनके ज़रिये खुशियों की होली।

जादव “मोलाई” प्योंग जोरहाट के एक पर्यावरण और वानिकी कार्यकर्ता हैं, जिन्हें लोकप्रिय रूप से फॉरेस्ट मैन ऑफ इंडिया के रूप में भी जाना जाता है। कई दशकों के दौरान, उन्होंने ब्रह्मपुत्र नदी के एक सैंडबार पर पेड़ लगाए और उस जगह को जंगल में बदल दिया। मोलाई” प्योंग को वन-रिज़र्व एकल बनाने की दिशा में उनके महान कार्य के लिए पद्म श्री से सम्मानित किया गया था।वह एक स्टैंड-अलोन भावना का एक सच्चा उदाहरण है।आइये इस कविता के माध्यम से इनकी महानता पर एक नज़र डालें।

किसी बेज़ुबान के दर्द को समझ पाना,
हर एक के बस की बात नहीं। 
सोता तो था, वो व्यक्ति मगर ऐसे ही आई ,
उसके जीवन में, सुकून की रात नहीं। 

बढ़ चला अकेला जाधव, लाखो जानवरो को उनका हक़ दिलाने। 
प्रकृति के तमाम बिखरे, टुकड़ो को, प्रकृति से मिलाने। 

ना किसी संस्था का साथ था,ना ही सोना, चाँदी,
ना ही रुपये और पैसो का खज़ाना उसके पास था। 
केवल उसकी इच्छा शक्ति ने ही दिया, उसे सहारा,
मिलता कहाँ, इस दुनिया में,डूबती नैया को आसानी से किनारा?

अपने सपने और हौसले का साथ उसने नहीं छोड़ा,
हर परिस्थिति में खुदको थामे उसने,
अपने लक्ष्य की ओर  ही अपना रुख मोड़ा। 
इसलिए ही लाखो जीव जन्तुओ की रक्षा वो कर पाया। 
अकेले जाधव ने 35 सालो की मेहनत करके,
1360 एकड़ का जंगल बिना किसी सरकारी मदद से सजाया।

रुमा देवी -रेगिस्तान राज्य की सर्वोत्कृष्ट बाड़मेर पैचवर्क और कढ़ाई डिजाइनों के लिए विख्यात राजस्थानी ग्रामीण रूमा देवी ने अपने काम से अपनी एक अलग और अनोखी पहचान बनाई है उन्हें देख कर कोई धोखा ना खाये क्योंकि वह बाकि डिज़ाइनर की तरह बिलकुल भी नहीं दिखती है। आज वह अपने गुणों की वजह से सबसे प्रतिष्ठित डिजाइनरों में से एक है, जो अपनी अनोखी रचनात्मकता के लिए जानी जाती है।आइये एक छोटीसी कविता के माध्यम से इनके जीवन को पहचाने, कि कैसे अपनी गृहस्थी को संभालते हुये इन्होने अपना और दूसरों के जीवन में सफलता का परचम लहराया।

एक महिला के प्रकाश ने कैसे,
लाखों घरो में रोशनी को फैलाया।
एक छोटीसी शुरुवात करके,
अपने साथ साथ औरो को भी जगाया।

जो कुछ भी मिला जीवन में,
इस देवी ने उसे प्यार से अपनाया।
अपनी क्षमताओं को अपने दम पर जगाकर ,
देश विदेश में, अपना करोबार फैलाया।

घर गृहस्थी के साथ साथ अपने,
हर सपने को साकार बनाया।
यूँ संघर्षो से जूझ कर, 22000 से ज़्यादा,
परिवारों की महिलाओ को भी रोज़गार दिलाया।

यूँ रुमा देवी ने हस्तकला उत्पाद में,
एक अनोखा इतिहास रचाया।

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