नारी अबला नहीं सबला है।

प्रेरणा महरोत्रा गुप्ता द्वारा लिखित।
स्वामी विवेकानंद द्वारा नारी की गरिमा के लिए कहा गया ये वाक्य शत प्रतिशत बिलकुल सच है-उन्होंने कहा कि दुनिया की हर नारी ही शक्ति का अवतार है, जो शक्ति की देवी है। एक बार जब हम उसके आशीर्वाद को पा लेते है तो हमारी ताकत कई गुना बढ़ जाती है।
आज से नहीं नारी, ना जाने कितने युगों से परीक्षाएं देती आ रही है, दुःख केवल इस बात का है कि इतना कर भी इतिहास के पन्नो में नर के मुकाबले नारी की वीरता की छवि कम झलकती है। आइये आज इतिहास के पन्नो को पलटे और जाने नारी को जिस जिस ने भी कमज़ोर या असहाय समझा नारी ने अपनी क्षमताओं के बल पर उसे गलत साबित करके दिखाया।
आज भी हर नारी में उस देवी शक्ति माँ का स्वरुप ही है, बस वक़्त के साथ साथ ज़िम्मेदारियों के रहते वो अपना सही रूप कही भूल गई है। आइये आज हर नारी को उसकी शक्तियों से अवगत कराते है। देवी ने हर बार मानव का साधारण सा रूप लेकर इस दुनिया की हर नारी को उसके रूप की सही पहचान उसे कराने की कोशिश की है, मगर कुछ ही उस सही ज्ञान को समझ कर, उसे अमल कर अपने जीवन को सफल बना पाती है। आज इस लेख से हमे यह सीखना है अगर कुछ ने अपना जीवन सफल बनाया तो हम भी अपनी हर कठिन परिस्थिति से लड़ कर अपने जीवन को सफल बना सकते है।

सती सावित्री -सावित्री भारतीय संस्कृति में एक ऐतिहासिक चरित्र माना गया है।राज कुल में जन्मी और फिर पतिव्रत धर्म निभाने के लिए जंगल-जंगल अपने पति और उनके परिवार के संग भटकी। शादी से पूर्व ही सावित्री को पता था कि उनके पती सत्यवान की आयु ज़्यादा नहीं है फिर भी यह जान कर भी उन्होंने सत्यवान से ही विवाह किया। शादी के कुछ साल बाद जब उनके पति की मृत्यु समीप आई तब वह यमराज से भी लड़कर अपने पति के प्राण वापिस ले आई।

रानी लक्ष्मी बाई -वह बचपन से ही काफी तेजस्वी और हर चीज़ को बड़ी बारीकी से परखती थी। इनका बेटा जन्म के कुछ महीनों बाद ही मृत्यु को प्राप्त हो गया था। उसके दो साल बाद उनके पति राजा गंगाधर राव की भी बीमारी के कारण मृत्यु हो गई, और फिर अंग्रेज उनका राज्य हथियाने की कोशिशों में जुट गए थे, लेकिन ऐसे में उन्होंने सत्ता अपने हाथ में लेकर दुनिया को दिखाया कि एक महिला भी शासन संभाल सकती है।जीवन के प्रति उनके इस सकारात्मक रवैये ने उन्हें हर कठिन से कठिन परिस्थिति में संभाला और अंत में उनके इसी रवैये ने उन्हें सफल बनाया।

रानी पद्मावती-भारत के इतिहास के पन्नो में समाई सबसे सुन्दर और साहसी रानी पद्मावती थी.विवाह के उपरांत वह चित्तौड़ राज्य की रानी बनी और राजा रावल रत्न सिंह की पत्नी जो चित्तौड़ राज्य को बड़े कुशल तरीके से चलाते थे। अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ राज्य पर आक्रमण करके राजा रावल रत्न सिंह को मार दिया। उनकी मृत्यु के उपरांत वह रानी पद्मावती को पाना चाहता था। अपने गौरव की रक्षा की खातिर रानी पद्मावती ने अनेको सैनिको की पत्नियों के साथ जौहर किया और अपने राज्य के मान की खातिर अपने प्राणों का बलिदान दिया।अपने जीवन काल में वह साहसी नारी कभी गलत के आगे झुकी नहीं बल्कि डट कर हर परिस्थिति का सामना किया और बहुत बारी अपने दुश्मनो को अपनी चतुराई से हराया।

कल्पना चावला-अपने नाम की ही भाति कल्पना चावला ने भी बचपन से ही अंतरिक्ष में उड़ान भरने की कल्पना की थी। कल्पना चावला पहली भारतीय अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री और अन्तरिक्ष में जाने वाली प्रथम भारतीय महिला थी। 1997 में वह अंतरिक्ष शटल मिशन विशेषज्ञ थी और 2003 में कोलंबिया अन्तरिक्ष यान आपदा में मारे गये सात यात्रियों के दल में से एक थी।अपने जीवन में जो सोचा उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से उसे पाकर भी दिखाया, भले ही कम आयु में वह इस दुनिया को छोड़ गई लेकिन अपनी इच्छा शक्ति से उन्होंने अपना जीवन सफल बनाया और इतिहास के पन्नो में अपनी एक अनोखी जगह बनाई।

नीरजा भनोट– बचपन से ही खुश मिज़ाज़ रहने वाली नीरजा भनोट मुंबई में पैन ऍम एयरलाइन्स की विमान परिचारिका थीं। नीरजा का विवाह वर्ष 1985 में संपन्न हुआ, लेकिन कुछ दिनों बाद दहेज के दबाव को लेकर इस रिश्ते में खटास आयी और विवाह के दो महीने के बाद ही नीरजा वापस मुंबई आ गयीं।5 सितंबर 1986 को मुम्बई से न्यूयॉर्क जा रहे पैन एम फ्लाइट 73 के अपहृत विमान में यात्रियों की सहायता एवं सुरक्षा करते हुए वे आतंकवादियों की गोलियों का शिकार हो गईं थीं।वे चाहतीं तो दरवाजा खोलते ही खुद पहले कूदकर निकल सकती थीं किन्तु उन्होंने ऐसा न करके पहले यात्रियों को निकालने का प्रयास किया।नीरजा को भारत सरकार ने इस अदभुत वीरता और साहस के लिए मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया जो भारत का सर्वोच्च शांतिकालीन वीरता पुरस्कार है।अपनी वीरगति के समय नीरजा भनोट की उम्र 23 साल थी। इस प्रकार वे यह पदक प्राप्त करने वाली पहली महिला और सबसे कम आयु की नागरिक भी बन गईं.
भारत की इन वीर पुत्रियों से हमने सीखा कि जीवन में कुछ करने के लिए दृणसंकल्प की सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है, क्योंकि सफलता के बारे में सोचना तो बहुत ही आसान है मगर आजीवन मेहनत कर उस पर टिके रहना उतना ही मुश्किल होता है। जो व्यक्ति बिना किसी की परवाह किये बस सत्य की राह पर चलकर अपने लक्ष्य पर ही ध्यान देता है, ऐसे हर व्यक्ति के कदम सफलता एक न एक दिन ज़रूर चूमती है।
सराहनीय रचना
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