शिकायतों का पुलिंदा

शैली कालरा की कविता
ताँ उम्र बस
शिकायतों का पुलिंदा
सर झुकाये रखा।
सोच कर यूँही
बेवजह बस
दिल जलाए रखा।
ना क़ीमत तब थी
ना आज
नाराज़गी का
बेवजह मौसम
बनाए क्यूँ रखा।
बेवजह बयाँ
केरें क्या
औरों का क्या
सुन्ने की फुर्सत
कहाँ किसी को
शिकायतें तो बस
खुद से होती है
बेवजह बोझ
उठाये क्यूँ रखा।।
लेखिका शैली कालरा