शायद तुम ऐसे ही होते…

हे प्रभु जो होते तुम इंसानो के बीच, तो इस दुनिया में तुम कैसे रहते??
जो होते तुम, हमारे घर के मुखियां,
तो खुल कर, हमे तुम जीने देते।
हमे हर परिस्थिति में संभाले,
अपनी बात भी हमसे, तुम खुल कर कहते।
जो होते दफ्तर में तुम हमारे बॉस,
तो बात-बात पर, हमे नीचा ना दिखाते,
अपने स्वार्थ के खातिर,
अपने को तुम,कभी बड़ा ना बताते।
दिखावा कर अपने अनुभव का,
तुम खुदका,कभी बखान नहीं करते।
तुम्हारे कटु शब्द पर तुम्हारे नौकर,
अंदर ही अंदर तिल तिल नहीं मरते।
जो होते तुम, हमारे स्कूल के अध्यापक,
तो प्यार से समझाकर, हमे जीवन का हर पाठ पढ़ाते,
चलकर पहले खुद ही सही राह पर,
तुम अपने शिष्य की प्रेरणा बन जाते।
जो होते तुम हमारे जीवन साथी,
तो हमारे मान की तुम रक्षा करते,
अपनों को संभाले, तुम इस जग का कल्याण भी करते।
गलतियों पर टोक कर हमारी,
हर प्रयास में तुम हमारा मान बढ़ाते।
रूठे भरे इस मन को हमारे,
तुम अपने निस्वार्थ स्नेह से मनाते।
जो होते तुम सच्चे सखा हमारे,
तो ज़िन्दगी हमारी तुम अपनी यारी से सजाते।
सुखो का मेला होता, या दुखो की आंधी,
हर परिस्थिति में तुम अपने यार को बस गले लगाते।
जो होते तुम रिश्तेदार हमारे,
तो हमारे घर की खुशियाँ देख, तुम भी खुश हो जाते,
हर तीज त्यौहार में संग हमारे, तुम खुशियों के दीप जलाते।
हमारे दुखो में शामिल होकर,
शायद तुम भी हमारे दुखो में अश्क बहाते।