जागो अभी भी वक़्त है।

जो मन को नहीं भाये,
तो सौ बहाने मिल जाते है इनकार के,
कठिन परिश्रम करके ही, आते है दिन बहार के।
बहाना बनाकर, बहाने से,
जो तुम अपने कर्म से जी चुराओगे।
ज़िन्दगी की इस दौड़ में,
तुम खुद को फिर हमेशा ही पीछे पाओगे।
आसान है बस बैठ कर बातें मिलाना,
अपनी सफलता के खातिर,
संग अपने बैठकर, तुम खुदको
कभी खुदसे भी मिलाना।
मिलेगी मंज़िल उसी को,
जो खुदकी अंतरआत्मा की,
आवाज़ को सुन पायेगा।
राजा हो या फ़क़ीर,
अमर होकर तो यहाँ कोई नहीं रह पायेगा।