कैसे जीवन की सबसे बुरी घटना ने अरुणिमा सिन्हा को विश्व विजेता बना दिया।
प्रेरणा महरोत्रा गुप्ता द्वारा लिखित
2011 में, 24 वर्षीय अरुणिमा सिन्हा को डकैतों द्वारा एक चलती ट्रेन से फेंक दिया गया था,क्योंकि उन्होंने अपनी पहनी हुई सोने की चेन को देने से इनकार कर दिया था। ट्रैन से फैके जाने पर वह अपना बायां पैर खो बैठी।इस घटना ने उनकी पूरी ज़िन्दगी बदल दी. किसीने उनकी परिस्थिति को समझा तो किसी ने व्यंग करते हुए कहा कि अब इसकी शादी कैसे होगी और ऐसे कई और व्यंग करके उनका हौसला तोड़ने की कोशिश की, परन्तु इतनी विपरीत परिस्थिति होते हुए भी उन्होंने माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने का निर्णय लिया।अपने हौसले को मज़बूत कर 2013 में उन्होंने यह कारनामा करके दुनिया की पहली अपंग महिला बन गई और एक अनोखा इतिहास रचा। उनकी इस उपलब्धि पर उन्हें भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म श्री से सम्मानित किया गया।
उनका प्रारंभिक जीवन
सिन्हा का जन्म उत्तर प्रदेश में लखनऊ के पास अम्बेडकर नगर में हुआ था। उनके पिता भारतीय सेना में इंजीनियर थे और उनकी माँ स्वास्थ्य विभाग में पर्यवेक्षक थीं। उनकी एक बड़ी बहन और एक छोटा भाई है। जब वह 3 वर्ष की थी तब उनके पिता की मृत्यु हो गई और उनकी बहन के पति ने उनके परिवार की देखभाल करना शुरू कर दिया।
अरुणिमा को साइकिल चलाना व फुटबॉल पसंद था और एक राष्ट्रीय वॉलीबॉल खिलाड़ी भी थी। वह अर्धसैनिक बलों में शामिल होना चाहती थी। उनको CISF से एक कॉल लेटर मिला था और उसके जवाब में दिल्ली जाते समय,उनको ये उनके जीवन, बदलने वाले हादसे का सामना करना पड़ा।

वो रात जो वो कभी भुला नहीं सकती।
घटना को याद करते हुए उन्होंने कहा:“मैंने विरोध किया और चोरों ने मुझे ट्रेन से बाहर धकेल दिया। मैं हिल भी नहीं सकती थी। मुझे याद है कि एक ट्रेन मेरी तरफ आई और जैसे ही मैंने उठने की कोशिश की तब तक ट्रेन मेरे पैर के ऊपर से निकल चुकी थी। मुझे उसके बाद कुछ भी याद नहीं है।तुरंत, जैसे ही वह रेलवे ट्रैक पर गिरी, समानांतर ट्रैक पर एक और ट्रेन ने उनके पैर को घुटने से नीचे कुचल दिया। गंभीर पैर और पैल्विक चोटों के साथ उन्हें अस्पताल ले जाया गया, और डॉक्टरों ने उसकी जान बचाने के लिए उनका एक पैर काट दिया।
उन्हें भारतीय खेल मंत्रालय द्वारा 25,000 रुपये का मुआवजा दिया गया था। राष्ट्रीय नाराजगी के बाद, युवा मामलों और खेल राज्य मंत्री अजय माकन ने अतिरिक्त रुपये की घोषणा की और दोनों मिलाकर उन्हें रुपये 200,000 चिकित्सा राहत के रूप में मुआवजा मिला , साथ में सीआईएसएफ में नौकरी के लिए एक सिफारिश भी। भारतीय रेलवे ने भी उनके लिए नौकरी का प्रस्ताव रखा।
18 अप्रैल 2011 को, उन्हें आगे के उपचार के लिए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में लाया गया, संस्थान में चार महीने बिताए। उन्हें दिल्ली की एक निजी कंपनी द्वारा एक कृत्रिम पैर निशुल्क प्रदान किया गया।
घटना की पुलिस द्वारा की गई पूछताछ ने, दुर्घटना पर उनके कथन को संदेह में डाल दिया। पुलिस के अनुसार, वह या तो आत्महत्या का प्रयास कर रही थी या रेलवे पटरियों को पार करते समय उनके साथ यह दुर्घटना हुई । अरुणिमा ने दावा किया कि पुलिस झूठ बोल रही थी। पुलिस के दावे के विपरीत इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने भारतीय रेलवे को अरुणिमा सिन्हा को रुपये 500,000 का मुआवजा देने का आदेश दिया।
माउंट एवरेस्ट चढ़ाई
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में इलाज के दौरान भी, उन्होंने माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने का संकल्प लिया। वह क्रिकेटर युवराज सिंह (जो सफलतापूर्वक कैंसर से जूझ रहे थे) और अन्य टेलीविज़न शो से प्रेरित थीं, “अपने जीवन के साथ कुछ करने के लिए उन्होंने नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग, उत्तरकाशी से बुनियादी पर्वतारोहण पाठ्यक्रम में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया और अपने बड़े भाई ओमप्रकाश द्वारा एवरेस्ट पर चढ़ने के लिए उन्हें प्रोत्साहित किया गया और वह एक कृत्रिम पैर के साथ माउंट एवरेस्ट पर चढ़ गई.
सिन्हा टाटा समूह द्वारा प्रायोजित इको एवरेस्ट अभियान के हिस्से के रूप में 21 मई 2013 को सुबह 10:55 बजे माउंट एवरेस्ट की चोटी पर 52 दिन में पहुंची और एवरेस्ट को फतह करने वाली पहली अपंग महिला बन गईं।घटना को याद करते हुए उन्होंने कहा, मेरी ऑक्सीजन समाप्त होने वाली थी और मुझे पता था कि मैं शायद मरने वाली हूं इसलिए यह महत्वपूर्ण था कि मेरी उपलब्धि के दृश्य प्रमाण इस दुनिया के सामने आये इसलिए मैंने अपने देश का झंडा शिखर पर लहराया , उसके बगल में मेरे आदर्श स्वामी विवेकानंद की कुछ तस्वीरें जमा कीं। तब मैंने अपने ऑक्सीजन के अंतिम वेस्टेज का इस्तेमाल किया और अपनी, चोटी के शिखर पर खड़े होकर तस्वीरें लीं। पचास कदम बाद, मेरी ऑक्सीजन समाप्त हो गई।
विश्वास, भाग्य, किस्मत और इस तरह के चमत्कारों पर मुझे ज़्यादा विश्वास नहीं था क्योंकि मेरा ये मानना है कि हम खुद ही अपनी नियति का चार्ट बनाते हैं। यह मेरा दृढ़ विश्वास है कि भाग्य उन लोगों का पक्ष लेगा जिनके अंदर जीतने की आग हो। जब मैं सांस के लिए घुटन और हांफ रही थी तब मुझे ऑक्सीजन का एक अतिरिक्त सिलेंडरभरा मिला। मेरे शेरपा ने झट से मुझे वो दे दिया । धीरे-धीरे हम नीचे की ओर उतरने लगे। नीचे की ओर उतराई पर और अधिक मौतें होती हैं, फिर मैंने सोचा ईश्वर ने मुझे अब तक बचाया है तो इसके पीछे कोई तो रहस्य होगा और जहाँ इतना सब कुछ अपने दम पर पार किया है, तो ये रास्ता भी आसानी से निकल जायेगा।
अरुणिमा सिन्हा का संदेश।
अरुणिमा सिन्हा का कहना है विफलता तब नहीं है जब हम अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में विफल हो जाते हैं। यह तब है जब हमारे पास पर्याप्त लक्ष्य ही नहीं हैं। अरुणिमा द्वारा लिखी गई कविता।
रहने दे आसमा, ज़मीन की तलाश कर,
रहने दे आसमा, ज़मीन की तलाश कर,
सब कुछ यही है, कहीं और ना तलाश कर,
जीने के लिए बस एक कमी ही तलाश कर।