एक टीस अभी बाकी है !!!

आनंद प्रकाश द्वारा लिखित

निर्भया को अभी तक न्याय नहीं मिला; और मिला भी, तो कभी पूरा नहीं मिल पाएगा; तत्कालीन बाल कानून के कारण ! हां, एक संशोधन अवश्य हुआ, पर क्या यह पर्याप्त है…

जूविनाइल कानून  में
संशोधन बेकार ।
बच्चे प्रेरित रेप को
सजा छूट साकार।।
             *
यानी इस संशोधन से अपराध आयु सीमा में कमी अवश्य आई ; लेकिन उससे बलात्कार और हत्या जैसे जघन्य बाल अपराध की दोनों टांगे नहीं कटी। अब यह  लंगड़ा अपराध  कठोर सजा और फांसी में छूट के आधार पर सोलह वर्ष तक के सिरफिरो को  अपनी ओर आकर्षित करने में लगा है …
 छूट मिली है रेप की
करो न सोलह  पार।
कैसा भी अपराध हो
जन्मसिद्ध अधिकार।।
             *
क्या कानून और कानून बनाने वाले वाकई अंधे हैं? यह  कैसा तर्क कि  अपराध बालिगों जैसा और सजा नाबालिगों जैसी ! ये  नाबालिग भी…

अपराधी हैं यौन के
इन पर चढ़ा जुनून।
जितना जल्दी हो सके
बदलो ये  कानून।।
        *
अरे, सीधी सी बात है; जैसा  अपराध वैसी सजा !  ना छूट, ना हमदर्दी, ना प्यार…

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