क्षत विक्षत आत्माएँ-जीवित भी,मृत भी

आनंद प्रकाश द्वारा लिखित यौन दरिंदे, हैवानियत, जली अधजली लाशें और क्षत विक्षत आत्माएँ-जीवित भी, मृत भी….यौन पीड़िता कर रहीं पल पल यही गुहार।जैसे भी हो तुरत हीदेयो दरिन्दे मार।। पर उनकी सुनता कौन है? संसद और विधान सभाओं में बलात्कारियों की मौजूदगी, संवेदनहींन राजनीति, दलों की दलदल, स्वार्थ, निर्लजता और उपेक्षा के नक्कारखानो के शोर में पीड़िताओं के विलुप्त होते टूटेफूटे बेबस,
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