वक़्त ….. लेखिका शैली
शैली कालरा की कविता
वक़्त के
इस ठहराव ने
बूढ़ी आँखों में
आँसू रुकते भी
देखें हैं।
बेख़ौफ़ होकर
जो चलते थे क़दम
आज बैसाखी के
मौहताज़ होते भी
देखे हैं।
जिनके आजाने की
दहशत से
लोग चुप होजाया करते
आज उनको चुप होकर
सब कुछ
सहते भी देखे हैं।
वक़्त ने हालात
बदलते देखे हैं।
नादान हैं
हमारे सभी बुज़ुर्ग,
जाने कुछ को
बनाने के चक्कर में
अपने अरमानों को
जलते हुए भी देखे हैं।
ना जाने दोष
हम किसको दे
हालात या मुक़्क़दर को
इन्हें तलाश है
प्यार की
और तरसाते भी
अपनो के देखे हैं।
वक़्त ने हालात
बदलते भी
देखे हैं।
लेखिका शैली कालरा